ये एक वाक्य जो रोजमर्रा की ज़िन्दगी में न जाने हम कितनी बार दोहराते होंगे. इसका उपयोग इंसान की समस्यों से बच के निकल जाने का एक साधन मात्र बन गया था. ये वाक्य समझौते का वाक्य है......
इसके निरन्तर उपयोग को हमने अपनी कमजोरियों से बच निकलने का जुमला बना लिया था. इसका दूसरा उपयोग चाटुकारिता के लिए भी ज्यादा किया गया.
सरकारी बाबुओं से लेकर Corporate offices और यहाँ तक कि गृहस्थ जीवन के झमेलों का एक ही रामबाण उपाय बन गया था "सही बात है", सुनने में मामूली ये वाक्य कइयों के लिए बच निकलने का साधन बन गया. इस तरह हम कह सकते है की सुनने में 'positive' इस वाक्य को हमने धीरे से कब 'negativity' का चोला पहनाया, और शान से सीने से लगाकर घूमने लगे पता ही नही चला.
पर बीते दशक में एक व्यक्ति ऐसा हुआ जिसने 'सही बात है' के इस वाक्य में दोबारा जान फूंक दी. वे थे डॉक्टर हंसराज हाथी. ये 'तारक मेहता का उल्टा चस्मा' धारावाहिक में एक काफी चर्चित कलाकार थे. ये धारावाहिक हम सबने अपनी ज़िंदगी में कभी न कभी तो जरूर देखा होगा. SONY SAB के इस कार्यक्रम ने आम आदमी के जिंदगी को छोटे परदे पर उतारा और चुनौतियों से लड़ने के अलग मायने दिखाए. इसी कार्यक्रम में देखे जाते थे हमारे 'डॉ. हाथी'. हालाँकि, धारावाहिक के हलके-फुल्के हास्य को बनाए रखने के लिए डॉ. हाथी के मोटापे का काफी इस्तेमाल हुआ.....उनका नाम हाथी रखने से लेकर, उनको 'भुक्खड़' की छवि भी इसी शो ने दिलाई. हममें से कितने हैं जो अपने 'मोटापे' को लज्जा का कारण
बनाकर बैठे हैं.. उससे बचने के लिए समाज में दिन-प्रतिदिन उलझते है. मोटापे को गलत, और 'फिट' रहने को सही दिखने वाले समाज ने डॉ. हाथी को भी नहीं बक्शा....पर डॉ. हाथी ने अपने इस 'Objectification' के बाद भी कार्यक्रम में अपना किरदार बखूबी निभाया.
कार्यक्रम में उनके होने से दर्शको के होठों पे मुस्कान देखते ही बनती थी. असल जिंदगी में वे कैसे थे उसे तो हम नहीं जान सके लेकिन हाँ, उनका असली नाम 'कवी कुमार आजाद' था 'हाथी' नहीं.
आज़ाद, 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के वो अभिन्न अंग थे जिनके न होने से मन अपने आप कुछ अजीब सा हो जाता था. एक छोटे बच्चे के समान उनकी हँसी दर्शको का दिल जीतने के लिए काफी थी. आज़ाद' एक और सबसे खास बात के लिए प्रसिद्ध थे, वो है उनका तकियाकलाम 'सही बात है'. कभी न कभी कुछ गलत हो जाने वाले 'गोकुलधाम सोसाइटी' के लिए ये 'सही बात है' एक मरहम की तरह थी. 'सही बात है', ये वाक्य इतना प्रचिलित हुआ के बच्चा बच्चा इसका उपयोग करके दूसरों की दबी हुई हँसी को निकलने में माहिर हो गया. बड़ों ने भी इसके इस्तेमाल को कई जगहों पर भुनाया, यहाँ तक की 'HIKE' पर इसके लिए स्टीकर भी बना दिया गया. पर दुःख की बात है, कि सदी के इस हसमुख 'कलाकार' को अब हम और नहीं देख पायेंगे. 9th July,2018 को 'आज़ाद' उर्फ़ हमारे डॉ. हाथी का Heart-attack से निधन हो गया. ये बात उनके चाहने वालों के लिए एक सदमे से कम नहीं है. अब शायद गोकुलधाम सोसाइटी में उलझनों का समाधान इतनी आसानी से कभी नहीं निकलेगा. और शायद शाम को अब्दुल की दुकान पर सोडा पीते हुए सारे यार किसी बात पर 'सही बात है' बिना सुने ही घर को रवाना होंगे.
और ये बिकुल 'गलत बात है'.
अपने तकियाकलाम को सही अर्थ देने वाले 'आज़ाद' अब हमारे बीच नहीं हैं. उनकी कमी न जाने क्यों अभी से ही खल रही है.अब शायद फिर से ये वाक्य अर्थहीन हो जाये. कही फिर से इसमें नकारत्मकता जगह न बना ले इसका डर सबको रहेगा. अंजाम जो भी हो, ये सच है की सदी के इस 'डॉक्टर' ने हम सबका दिल छुआ और भारत के हर घर में अपनी जगह बना ली.
जब भी कभी 'सही बात' पर चर्चा होगी उनकी छवि आँखों के सामने आएगी जरूर.
रंगमंच का ये कलाकार अपने रौब नहीं बल्कि अपनी मुस्कान के लिए हमेशा जाना जायेगा.
(Picture Courtesy- Picdunia)