अक्सर Tv पर pepsi का एक advertisement बहुत पसंद आता है, ख़ासकर उसमें बोले जाने वाली line की वजह से ' क्या भाई सूखे-सूखे?'
आज वो लाइन लोकसभा चुनावो के महत्व से उपयोगी हो चुकी है। आज महागठबंधन की maha-meeting कोलकाता में हुई, कई बड़े नेता आए थे, कई मुद्दे की राजनीति के लिए भी आए होंगे ऐसा मेरा विश्वास है। शहर में छोटा- मोटा पर्व सा माहौल बन चुका था। लाखों की भटकी और शायद न्याय की अपेक्षा रखने वाली भीड़ भी मौजूद थी। उसी भीड़ का एक बड़ा हिस्सा state-sponsored डिम- भात भी खाने आयी थी। अगर आप विदेशी सोच वाले हैं तो आपको बताना चाहूंगा के ये प्रथा भारत में काफी दिनों से है। UP- BIHAR में चुनाव चाहे राज्यसभा चुनाव हो या ग्राम पंचायत या प्रधानी का नेता, अपने वोटरों के घरों में मुर्गी और बकरी पहले से भेज देते हैं। इस आशा में के आम दिनों में हुई नेता की बैमैनी को वो मुर्गा खाकर भूल जाएंगे और अपना वोट उन्हीं को देंगे। हालांकि, हमारे अंचल के कुछ वोटर अपने लोकतांत्रिक (democratic) अधिकार का मूल्य जानते हैं, और बिना सस्ती दारू के किसी को वोट देना धोका समझते हैं।
ये चलन लोकसभा चुनाव में भी आ चुका है, दीदी के मीटिंग में गए सभी लोग गाड़ी भर- भर के अंडा- चावल खाने गए, गलियों में दीवारों पर भी मेनू छपा मिला। लोग खुश थे, पर यहां भी चालाकी से काम लिया गया, अंडे half-piece ही मिल रहे थे। लोगो में नाराज़गी आगई।
मेरा ये संदेश मोदी जी के लिए है - जब आप मीटिंग करे तो पूरा अंडा दें। और याद रखे कुछ लोग advertisement में दिखने वाले उस कलाकार की तरह भी होंगे, उनको शिकायत का मौका ना दें, के वे भी बोल उठे - ' क्या मोदीजी सूखे- सूखे?'
तैयार रहे, लोसभा में जितने का मूल्य एक पूरा अंडा और चावल है।