क्या है, भारतीय जनता का मिज़ाज? कुछ दिनों में इलेक्शंस शुरू होंगे फिर exit polls ... सब कुछ साफ़ दिख जाएगा, के कौन जीता कौन हारा. Election का अब cricket से कोई दूर का अंतर नहीं बचा, जनता के लिए 'क्या लगता है, कौन जीतेगा?' मायने रखता है, भले से जितने वाली टीम से देश को क्या तरक्की मिलेगी, ये सवाल लोगो की उन्मादी सीटियों में सेहम कर बैठ जाए.
Default mode का अर्थ है, जैसा पहले था वैसा रहे. मोबाईल में कुछ ना समझने पर इसका use सभी प्राय कर ही लेते हैं. बहुत समय पहले अंग्रेज जो भारत में divide manufacture करके चले गए, हम उसी divide को डिफॉल्ट के मोड पर डाल कर चल रहें हैं।
Hindu- Muslim की लड़ाई ने क्रांतिकारी विचारधाराओं को बोरिया बिस्तर बांधने पर मजबूर कर दिया है. सभी intellectuals अपने अपने हिसाब से अपने धर्म को, या उनके धर्मो की कट्टरता को सपोर्ट करने वाली विचारधाराओं को protection देने में लगे हैं. हिन्दू खाना पीना छोर कर बस 'मंदिर वहीं बनेगा' की रट थामे बैठे हैं। मुसलमान चाय वाले को अपना दुश्मन बनाए बैठा है.
सारी पार्टियां अपने झंडे में हरे और भगवा रंगो को और गाढ़ा करने में जुटी हैं. इन सब से तो यही साबित होता है कि आज़ादी के इतने सालों बाद भी हम समाज की setting से अंग्रेज़ो द्वारा बनाई default mode को नहीं हटा पाए.
मेरे मुस्लिम दोस्तो ने दुआएं पढ़ ली और वोटर कार्ड को रोज पोछ रहे है, कहते हैं - वोट दीदी को या दादा owaisi को देंगे, कुछ तो rahul gandhi को साल भर गालियां देने के बाद भी congress को समर्थन देने के लिए तत्पर हैं, दूसरी ओर हिन्दू मित्र mahadev ओर hanuman जी को रोज आरती दिखा रहे, सर पे तिलक लगाए घूमते हैं मानो 'nationalist' का चिन्ह हो.
लगता है, यह default बदलने के लिए कोई और युवा पीढ़ी का इंतज़ार करना होगा. अगर आप ये default बदलना चाहते हैं तो, झंडा उठाकर देखे ' भगवा (saffron) और हरा (green)' दोनों झंडे का हिस्सा हैं. और जो भी पार्टी सिर्फ एक रंग की बात करे उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाएं। यह देश हिन्दुओं और मुसलमानों का है, सिखों और ईसाईयों का हैं, और उन बच्चों का हैं, जो आज भी झंडे को पूरा देखते हैं.
Jai Hind.
Default mode का अर्थ है, जैसा पहले था वैसा रहे. मोबाईल में कुछ ना समझने पर इसका use सभी प्राय कर ही लेते हैं. बहुत समय पहले अंग्रेज जो भारत में divide manufacture करके चले गए, हम उसी divide को डिफॉल्ट के मोड पर डाल कर चल रहें हैं।
Hindu- Muslim की लड़ाई ने क्रांतिकारी विचारधाराओं को बोरिया बिस्तर बांधने पर मजबूर कर दिया है. सभी intellectuals अपने अपने हिसाब से अपने धर्म को, या उनके धर्मो की कट्टरता को सपोर्ट करने वाली विचारधाराओं को protection देने में लगे हैं. हिन्दू खाना पीना छोर कर बस 'मंदिर वहीं बनेगा' की रट थामे बैठे हैं। मुसलमान चाय वाले को अपना दुश्मन बनाए बैठा है.
सारी पार्टियां अपने झंडे में हरे और भगवा रंगो को और गाढ़ा करने में जुटी हैं. इन सब से तो यही साबित होता है कि आज़ादी के इतने सालों बाद भी हम समाज की setting से अंग्रेज़ो द्वारा बनाई default mode को नहीं हटा पाए.
मेरे मुस्लिम दोस्तो ने दुआएं पढ़ ली और वोटर कार्ड को रोज पोछ रहे है, कहते हैं - वोट दीदी को या दादा owaisi को देंगे, कुछ तो rahul gandhi को साल भर गालियां देने के बाद भी congress को समर्थन देने के लिए तत्पर हैं, दूसरी ओर हिन्दू मित्र mahadev ओर hanuman जी को रोज आरती दिखा रहे, सर पे तिलक लगाए घूमते हैं मानो 'nationalist' का चिन्ह हो.
लगता है, यह default बदलने के लिए कोई और युवा पीढ़ी का इंतज़ार करना होगा. अगर आप ये default बदलना चाहते हैं तो, झंडा उठाकर देखे ' भगवा (saffron) और हरा (green)' दोनों झंडे का हिस्सा हैं. और जो भी पार्टी सिर्फ एक रंग की बात करे उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाएं। यह देश हिन्दुओं और मुसलमानों का है, सिखों और ईसाईयों का हैं, और उन बच्चों का हैं, जो आज भी झंडे को पूरा देखते हैं.
Jai Hind.
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